Oct11
Posted by Dr. Shriniwas Kashalikar on Thursday, 11th October 2012
THEORY AND PRACTICE DR. SHRINIWAS KASHALIKARI have realized that; often; while reading any particular matter about NAMA; I feel; "I already know this" or "this is obvious". This is theoretically true. Hence I unknowingly become casual or even condescending in my approach!! This is suicidal; as actually and practically; my "knowing" and "feeling obvious" are deceptive; and I am far from "internalizing", "realizing" and "expressing" the infinite and eternal ambrosia; inherent to NAMA.
MARATHI ESSENCE:
मी जेव्हा नामाबद्दल वाचतो; तेव्हा बर्याचदा मला; "मला हे माहीत आहे", "हे तर अगदीच स्पष्ट (ओबव्हियस) आहे"; अस वाटत.
तर्कदृष्ट्या ते चुकीचही नसत!! यामुळे मी काहीसा जादा शहाना बनतो!! हे घातक आहे. आत्मघातकी आहे!!
कारण नामाच अनंत सामर्थ्य माझ्या अंतरंगात स्फुरलेल नाही वा माझ्या आचार विचारात प्रगट झालेल नाही.
HINDI ESSENCE
मै जब नाम के बारे मे कुछ पढ़ता हूँ; तब मुझे लगता है की यह मुझे मालूम है, और यह एकदम आसान है.
तर्क दृष्टीसे देखे तो यह गलत भी नही है. लेकिन इससे होता यह है की मेरा ध्यान नामसे हटता है, और मै अपने आपको; बाकी लोंगोंसे बड़ा समझने लगता हूँ.
यह आत्मवंचना है!! यह आत्मघात है!!
प्रत्यक्श रूपसे नाम क़ा अमृत और नाम की अनंत शक्ती मेरे हृदयमे; अभी जागी नही है और मेरे जीवन मे प्रगट भी नही हुई है.