Jul22
Posted by Dr. Suhas Mhetre on Monday, 22nd July 2013
श्रीराम समर्थनामस्मरण क़ा चैतन्य: डॉ. श्रीनिवास कशालीकर
मेरे अंदर अंधश्रद्धा है, संशय भी है; ढोंग है और सचाई भी है, भावुकता है और तर्क भी है; डर है और साहस भी है; लाचारी है और स्वाभिमान भी है; बेईमानी है और ईमानदारी भी है; धर्मकी जरूरत है और स्वैराचार की भी चाहत है; आलस है और उत्साह भी है; संकुचित स्वार्थ है और उदारता भी है! इसलिए यह सब द्वन्द्व समाजमे भी है! नामस्मरण ( जाप, जप, जिक्र, सुमिरन, सिमरन, ईश्वर या आत्मतत्व क़ा स्मरण) से; मेरे और समाजके द्वन्द्व; सच्चिदानंद ( विश्वकल्याण और आत्मकल्याण) मे परिणित होने लगते है!