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May07

स्वास्थ्य विभाग को अक्सर शिकायतें मिलती रहती हैं कि कुछ प्राइवेट हॉस्पिटल अपने यहां से निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट खुले में फेंकते हैं.

प्रायः ऐसा देखने में आता है कि अस्पताल, नर्सिंग होम और पैथोलॉजी सेंटर से बायो मेडिकल वेस्ट ज्यादा निकलते हैं, मगर यहां का स्टाफ इसे लेकर गंभीर नहीं होता है। कई बार ये भी देखने में आया है कि इन स्टाफ को इस तरह का वेस्ट रखने के बारे में ठीक तरह से जानकारी भी नहीं होती है। इस वजह से वह उसे प्रॉपर जगह पर नहीं रखते हैं। हॉस्पिटल वेस्ट / अस्पताल से निकलने वाले अवशिष्ट (बेकार पदार्थ) का सही प्रकार से निवारण करना आवश्यक होता है. नहीं तो यह कई प्रकार के संक्रामक और असंक्रामक रोग फैला सकते हैं जिससे अस्पताल के कर्मचारियों को , रोगियों को और पूरे समाज को नुक्सान होता है.

तो मित्रों आज सोचा कि इन बेकार पदार्थों के निराकरण ( हॉस्पिटल वेस्ट मैनेजमेंट ) पर कुछ चर्चा करी जाए.

भारत में अनुमानित प्रति बेड प्रति अस्पताल में १-२ किलोग्राम और हर क्लिनिक पर ६०० ग्राम प्रतिदिन मेडिकल वेस्ट / मेडिकल कूड़ा पाया जाता है. इस तरह से अगर कोई १०० बेड का अस्पताल है तो हर दिन वहाँ से १००-२०० किलो मेडिकल वेस्ट / मेडिकल कचरा उत्पन्न होता है. ऐसा अनुमानित है कि इनमें से करीब ५-१०% मेडिकल वेस्ट घातक और संक्रामक होता है. जो कि १०० बेडेड अस्पतालों में करीब ५-१० किलो प्रतिदिन हो सकता है.
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भारत सरकार ने Biomedical Waste (Management and Handling) Rules 1998 पारित किया है जो कि उन सभी लोगों पर लागू होता हा जो ऐसे बायो-मेडिकल कचरे को इकठ्ठा करने , उत्पन्न करने, प्राप्त करने में, ट्रांसपोर्ट , डिस्पोस करते हैं या उनसे सम्बंधित डील करते हैं. यह नियम अस्पताल, नर्सिंग होम, क्लीनिक, डिस्पेंसरी, पशु संस्थान, पैथोलोजिकल लैब और ब्लड बैंक पर लागू होता है. ऐसे संस्थानों के लिए बायो मेडिकल वेस्ट / मेडिकल कचरे को ट्रीट करने के लिए अपने संस्थानों में मशीनें, और आधुनिक उपकरण में लगाने ही होंगे.उनके पास इसके निराकरण के लिए उचित व्यवस्था का सर्टिफिकेट होना चाहिए. अगर किसी के पास यह सर्टिफिकेट नहीं मिलता है तो हॉस्पिटल का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जाएगा।

हॉस्पिटल वेस्ट के सुरक्षित और प्रभावी निराकरण के कुछ उपाय होते हैं.

जैसे- सेग्रीगेशन, डिस् इन्फेक्शन , स्टोरेज, ट्रांसपोर्ट, फ़ाइनल डिस्पोज़ल.

सेग्रीगेशन –

इस प्रक्रिया में अलग अलग अवशिष्ट पदार्थों को अलग रंगों के थैलों में डाला जाता है. जिससे सबका अलग तरह से निस्तारण होता है.

पीला – ऐसे थैलों में सर्जरी में कटे हुए शरीर के भाग, लैब के सैम्पल, खून से युक्त मेडिकल की सामग्री ( रुई/ पट्टी), एक्सपेरिमेंट में उपयोग किये गए जानवरों के अंग डाले जाते हैं. इन्हें जलाया जाता है या बहुत गहराई में दबा देते हैं.

लाल- इसमें दस्ताने, कैथेटर , आई.वी.सेट , कल्चर प्लेट को डाला जाता है. इनको पहले काटते हैं फिर ऑटो क्लैव से डिस् इन्फेक्ट करते हैं. उसके बाद जला देते हैं.

नीला या सफ़ेद बैग- इसमें गत्ते के डिब्बे , प्लास्टिक के बैग जिनमे सुई , कांच के टुकड़े या चाकू रखा गया हो उनको डाला जाता है. इनको भी काट कर केमिकल द्वारा ट्रीट करते हैं फिर या तो जलाते हैं या गहराई में दफनाते हैं.

काला- इनमें हानिकारक और बेकार दवाइयां, कीटनाशक पदार्थ और जाली हुई राख डाली जाती है. इसको किसी गहरे वाले गड्ढे में डालकर ऊपर से मिटटी दाल देते हैं.

द्रव – इनको डिस् इन्फेक्ट करके नालियों में बहा दिया जाता है.

डिस् इन्फेक्शन-

इस प्रक्रिया द्वारा हानिकारक कीटाणुओं को हटा दिया जाता है. इसके कुछ विशेष तरीके हैं जैसे-

थर्मल ऑटोक्लैव- इससे गर्मी द्वारा कीटाणु नष्ट करते हैं,

केमिकल – इसमें फॉर्मएल्डीहाइड , ब्लीचिंग पावडर, एथिलीन ओक्साइड से कीटाणु नष्ट करते हैं.

रैडीएशन- अल्ट्रा वोइलेट किरणों द्वारा कीटाणुओं का नाश करते हैं.

स्टोरेज –

जब तक थैले पूरी तरह भर न जाएँ तब तक अवशिष्ट पदार्थों को निश्चित जगहों पर थैलों में भरकर रखा जाता है. इन थैलों पर नाम लिखते हैं और सिक्यूरिटी गार्ड रखा जाता है. ताकि कोई बाहरी व्यक्ति या कूड़ा उठाने वाला उसे गलती से न ले जाए. बाद में अस्पताल की निश्चित गाड़ियों में रखकर इन्हें जलाने या दफनाने भेजा जाता है.

ट्रांसपोर्ट –

अवशिष्ट पदार्थों को अस्पताल के अंदर और बाहर ले जाया जाता है. जो कर्मचारी ये काम करते हैं वे अपने हाथ में दस्ताने पहनते हैं और ये ध्यान रखा जाता है कि ये पदार्थ ट्रोली से बाहर न फैलें.

ऐसी गाड़ियों में साधारण कूड़ा नहीं रखा जाता है.

फ़ाइनल डिस्पोज़ल –

जो पदार्थ संक्रामक होते हैं उन्हें जलाया जाता है. जो संक्रामक नहीं होते हैं जैसे कागज उन्हें फिर से रीसाइकिल करके उपयोग कर लेते हैं.

आजकल बड़े शहरों में कुछ एजेंसियां हर माह अस्पतालों से बायो मेडिकल वेस्ट कलेक्ट करके ले जाती हैं और उसी हिसाब से उनसे पैसे लेती हैं। इन एजेंसियों ने इस तरह के वेस्ट को ट्रीट करने के लिए अलग से प्लांट लगा रखे हैं, इन सभी को वहीं पर इकट्ठा करने के बाद उसे ट्रीट किया जाता है।

तो मित्रों अगर आपके आस पास के किसी क्लिनिक या हॉस्पिटल के द्वारा ऐसे बायो मेडिकल वेस्ट / मेडिकल कूड़े का निस्तारण उचित ढंग से नहीं किया जा रहा हो तो इससे आपके स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है. आप ऐसे संस्थानों से अनुरोध करें कि वो परिसर के आसपास सरकार द्वारा निर्धारित मापदंडों का पालान करते हुए ऐसे कूड़े के निस्तारण की व्यवस्था करें.

जनहित में ये जानकारी शेयर करें !!!

“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ॥“

शेष अगली पोस्ट में.....

प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में,  

आपका अपना,

डॉ.स्वास्तिक 

(निःशुल्क चिकित्सा परामर्शजन स्वास्थ्य के लिए सुझावों तथा अन्य मुद्दों के लिए लेखक से drswastikjain@hotmail.com पर संपर्क किया जा सकता है )



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