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May07

भारत का ५००० वर्ष का अतीत इस बात का प्रमाण है कि भारतवर्ष के स्वास्थ्य और चिकित्सा के क्षेत्र में प्रारम्भ से ही परोपकार ,प्रेम और करुणा को सर्वोच्च स्थान था जिस कारण रोगी चिकित्सा को हमारे विद्वान वैद्यों ने कभी भी व्यवसाय के रूप में नहीं देखा.

इस रोगी सेवा को भारत में मानवता का मुख्य स्तंभ माना गया था. शायद इसी कारणवश रोगी सेवा का कार्य साधू संतों, ऋषि-मुनियों और समाज के प्रतिष्ठित वर्ग के पास रहा या यूँ कहिये कि जिन्होंने रोगी सेवा को महत्व् दिया वही लोग समाज में प्रतिष्ठित हो गए.

जब किसी परिवार में रोगी सेवा की जाती थी तो उनमे से कुछ परिवार इस कार्य को अपनी अगली पीढ़ी तक भी पहुंचा देते थे और इस तरह से भारत में चिकित्सा की पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली परम्परा का जन्म हुआ. इस कार्य के दौरान रोग मुक्ति में जो भी अनुभव प्राप्त होते थे वो अनुभव परिवार अपने पास सुरक्षित रख लेता था और उसे किसी अन्य को नहीं बताया जाता था. उस अनुभव को स्वार्थी लोग धन लोलुपता के लिए दुरूपयोग न करें ; इसी कारण उस विशेष रहस्य को सिर्फ सबसे योग्य व निपुण शिष्य को ही बताया जाता था. इस परम्परा को अपनाने वाले चिकित्सक किसी भी रोग का उपचार निःशुल्क करते थे और ऐसी मान्यता थी कि रोगी से धन लेने से उस उपचार का प्रभाव स्वतः नष्ट हो जाएगा.इस धारणा के पीछे यह भी भय था की गलत लोग इन रहस्यों को जान गए तो वो इससे अनुचित आर्थिक लाभ उठा लेंगे.

यह परम्परा आज भी भारत में कहीं कहीं विद्यमान है, परन्तु कालान्तर में ऐसा भी देखा गया कि सफलता मिलने के बाद कुछ परिवार अथवा कुछ आयुर्वेदिक चिकित्सक स्वयं की दूसरों पर श्रेष्ठता साबित करने के लिए उन गूढ़ रहस्यों को योग्य चिकित्सकों को भी प्रदान करने से परहेज करने लगे. मृत्युशय्या पर लेटने के बाद भी अधिकाँश ने उसे ज्ञान को देने से परहेज किया जिसकी परिणिति भारत के महान आयुर्वेद विज्ञान का धीरे धीरे अंत होने में हुई.

यही कारण है कि आज हम लोग चिकित्सा के लिए विदेशी ज्ञान की ओर जाते हैं और विदेशी कंपनियों के हाथों मनमाफिक तरीकों से प्रतिदिन करोड़ों अरबों रूपए व्यय रहे हैं. सरकार ने सरकारी अस्पताल खोल कर यह व्यवस्था की हुई है कि ग्रामीण तथा शहरी जनता को कम से कम खर्चे में सरकारी सेवाओं का लाभ हर क्षेत्र में मिले. कुछ जगह टेस्टिंग और स्कैनिंग का भी खर्च नहीं लिया जाता है. यह तो हुई वर्तमान में स्वास्थ्य क्षेत्र में उत्साहजनक पहलू.

 अब बात करते हैं इस क्षेत्र के निराशाजनक पहलू की. वह है चिकित्सा क्षेत्र में मुनाफाखोरी का आ जाना. यह बात तो सर्व विदित है कि कोई भी व्यवसाय बिना मुनाफे के लंबे समय तक नहीं चल सकता परन्तु मुनाफाखोरी कि भी एक सीमा तय होनी चाहिए. आम आदमी के दृष्टिकोण से देखा जाय तो इस क्षेत्र में अब खुली लूट हो रही है. यह भी हम सब जानते हैं कि पूरे मार्केट में आज ऐलोपाथिक प्रणाली का बोलबाला है और भारत की अधिकाँश दवा कंपनियां विदेशी बहुराष्ट्रीय नेटवर्क का ही एक हिस्सा है. ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां मुनाफा कमाने के लिए ही भारत में आई हुई हैं तो फिर किस आधार पर हम इनसे किसी राहत की उम्मीद करें ?

इस लूट में कंपनियां ही नहीं बल्कि काफी हद्द तक हमारी उपभोक्तावादी सोच और सरकारी तन्त्र भी ज़िम्मेदार है. अगर हम दवा के प्रकार की बात करें तो आज बाजार में दो तरह की दवा उपलब्ध है- एक वो जो दवा के मूल घटक के रूप में ही उपलब्ध है जिसे “जेनेरिक” दवा कहते हैं और यह लागत मूल्य से कुछ ही अधिक मूल्य पर उपलब्ध है. दूसरी वो जो एक विशेष’ नाम से बाज़ार में लॉन्च करी जाती है और उसका मूल्य १० गुना से १०००० गुना तक होता है, उसे “एथिकल/ब्रांडेड” दवा के नाम से बेचा जाता है और हम सब इन दवा के मूल्य से भी हज़ारों गुना ज्यादा चुकाते हैं.

ब्लड प्रेशर चेक करवाने से लेकर छोटे मोटे ब्लड टेस्ट करवाने में भी हमें २० रूपए से लेकर २००० रूपए देने पड़ते हैं. अस्पतालों में जो खून निशुल्क लोगों से दान के रूप में लिया जाता है उसी खून को कहीं पर बेचकर मुनाफ़ा कमाते हुए देखा गया है. यही असमानता आजकल लोगों की परेशानी का कारण बनी हुई है.

मेरा मानना है कि जब भोजन और कपड़ों पर आज नगण्य टैक्स है तो फिर चिकित्सा और दवा पर भी टैक्स नहीं होना चाहिए. यदि मुनाफे की बात आये भी तो भी इसकी दर १०००% न होकर सरकार द्वारा तय लिमिट से अधिक नहीं होनी चाहिए. दवा का व्यापार जिस तेज़ी से भारत में बढा है उससे ऐसा लगने लगा है कि बहुत जल्दी ही इस देश से मानवता समाप्त हो जायेगी और हम यांत्रिक मानव बन कर प्रोफिट एंड लॉस ही गिनते रह जायेंगे.

चिकित्सा के क्षेत्र में इन्ही विषमताओं को देखते हुए आपको अपनी हिंदी भाषा में अपनी ही पद्धति “आयुष” द्वारा स्वस्थ रहने के लिए मेरे विचारों बहुत ही आसान तरीके से चर्चा  के लिए इस सेक्शन की शुरुआत करी गयी है. इस कॉलम में जन स्वास्थ्य के लिय उपयोगी तथ्यों और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन के अन्य मुद्दों को भी  प्रकाशित किया जायेगा.

सर्वे भवन्तु सुखिनः , सर्वे सन्तु निरामयः , सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद दुखभाग्वेत !

धन्यवाद,

आपका अपना,

डॉ. स्वास्तिक



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