WORLD ASTHMA DAY
Posted by on Wednesday, 7th May 2014
हर वर्ष मई माह के प्रथम मंगलवार को विश्व अस्थमा दिवस होता है. इस वर्ष ६ मई को विश्व अस्थमा दिवस मनाया गया , तो मित्रों सोचा की आज इस व्याधि और इसकी चिकित्सा के बारे में कुछ जानकारी आपके साथ बांटी जाए.
भारत में एक कहावत प्रचलित है कि दमा दम के साथ ही जाता है।
अस्थमा या श्वास रोग मनुष्य में उपस्थित श्वासपथ की एक बीमारी है. मानव शरीर सभी बाहरी पदार्थों को स्वीकार नहीं करता. जिन पदार्थों को वह अस्वीकार कर देता है उन्हें एलर्जेन कहते हैं . उन एलर्जेन के संपर्क में आने पर प्रतिरोध करते हुए शरीर में जो अलग अलग लक्षण प्रकट होते हैं उन्हें एलर्जी कहते हैं। हमारी श्वास प्रणाली जब किन्हीं एलर्जेंस के प्रति एलर्जी प्रकट करती है तो वह श्वास रोग, दमा या अस्थमा कहा जाता हैं। यह दीर्घकालिक रोग होता है । अस्थमा के रोगी को सांस फूलने या साँस न आने के दौरे बार-बार पड़ते हैं और उन दौरों के बीच में वह अकसर सामान्य रहता है।
हाल ही में हुए आंकड़ों से पता चलता है कि पूरी दुनिया में २३५-३०० मिलियन लोग अस्थमा से पीड़ित हैं , और लगभग २,७0,000 लोग हर साल इस रोग से मरते हैं। लड़कों में मृत्यु दर लड़कियों की तुलना में दुगनी , वयस्क महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा व युवाओं में बुजुर्गों की अपेक्षा अस्थमा अधिक होता है.
अस्थमा के कारण - एलर्जी
• पशूओं की त्वचा, बाल, या रोयें से
• घास व पौधों के पराग व धूल के कणों से
• सिगरेट के धुएं व वायु प्रदूषण से
• ठंडी हवा या मौसमी बदलाव से
• पेंट की गंध, परफ्यूम या रूम फ्रेशनर से
• भावनात्मक मनोभाव (जैसे रोना या लगातार हंसना) और तनाव से
• वंशानुगत लक्षण
• गर्भावस्था में यदि महिला तंबाकू के धुएं के बीच में रहती है, तो उसके बच्चे को अस्थमा हो सकता है
लक्षण
• छींक या खांसी आती है ,नाक बजती है व सांस फूलती है; रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाती है
• अचानक शुरू होता है व थोड़े थोड़े गैप के साथ आता है
• व्यायाम करने से या ठंडी जगहों पर तीव्र होता है
• दवाओं के उपयोग से ठीक होता है
• खांसी; बलगम के साथ या बगैर होती है
• सांस लेते समय घरघराहट या सीटी जैसी आवाज़ आती है
• पीड़ित लोग कहते हैं की वे सांस पकड़ नहीं सकते
ऐसा करें
• धूल से बचें
• पालतू जानवरों को हर २ या ३ दिन पर नहलाएं.
• अस्थमा से प्रभावित बच्चों को उनकी उम्र वाले बच्चों के साथ सामान्य गतिविधियों में भाग लेने दें |
• स्टफड खिलोंनों को हर हफ्ते धोंए वह भी अच्छी क्वालिटीवाल एलर्जक को घटाने वाले डिटर्जेंट के साथ
• सख्त सतह वाले कारपेट अपनाए |
• एलर्जी की जांच कराएं जिससे आप एलर्जन की पहचान कर सकें |
• दवाइयों के असर न करने पर चिकित्सक से परामर्श करें
ऐसा न करें
• यदि आपके घर में पालतू जानवर है तो उसे अपने विस्तर पर या बेडरूम में न आने दें |
• गार्डन या पत्तियों के पास में ज्यादा काम न करें और न ही खेलें |
• दोपहर में परागकणों की संख्या बढ जाती है .उस समय बाहर काम न करें
पंख वाले तकिए का इस्तेमाल न करें |
• घर में या अस्थमा से प्रभावित लोगों के आस -पास धूम्रपान न करें
• अस्थमा से प्रभावित व्यक्ति से सामान्य व्यवहार करें |
• अस्थमा का अटैक आने पर न घबराएं. इससे प्रॉब्लम और बढ जाती है
चिकित्सा
मेरे पास ऐसे अनेक रोगी आते हैं जिन्हें वर्षों से ऎसी बीमारी है ; और इलाज में बहुत पैसा लग चुका है. अस्थमा / दमा के गरीब मरीजों को और जनसामान्य के हित के लिए इसकी प्रारंभिक चिकित्सा बतायी जा रही है. आपको सलाह दी जाती है कि यदि आप पैसा खर्च करने में समर्थ नहीं हैं तो यह उपचार करें. परन्तु इनसे भी आराम न मिले तो आयुष चिकित्सक से मिलकर उनके परामर्श द्वारा इसकी चिकित्सा करें.
अदरक की गरम चाय बनाएँ . इसमें लहसुन की ४ कलियां पीसकर मिलाएं . सबेरे और शाम इस चाय का सेवन करने से श्वास रोग नियंत्रित रहता है
५-६ लौंग लें और १५० मिली पानी में १० मिनट तक उबालें। इसे थोडा ठंडा करके इसमें एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाएँ और दिन में २-३ बार पिलायें
३०-३५ मिली दूध में लहसुन की ५-६ कलियां डालकर उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करें. इससे अस्थमा की प्रारंभिक अवस्था में लाभ होता है
२५० मिली पानी में मुट्ठीभर सहजन की पत्तियां मिलाकर करीब १० मिनट तक उबालें। मिश्रण को ठंडा करके इसमें एक नमक, चौथाई सैन्धव लवण,चुटकी भर कालीमिर्च और एक नीबू का रस मिलायें .इस सूप का नियमित रूप से इस्तेमाल करें
हरिद्रा खंड ५ ग्राम नियमित रूप से प्रातः सांय गरम दूध के साथ सेवन करें. ये एंटी एल्लेर्जिक की तरह कार्य करता है साथ में ही लवंगादि वटी को चूसते रहे .
यदि परेशानी बढ़े तो किसी अच्छे चिकित्सक से परामर्श करें
इनहेलर्स का प्रयोग दमा रोग में श्वसन तंत्र की सूजन को कम करने के लिए किया जाता है. इससे रोगी को तुरंत आराम मिलता है.
इस रोग को नियंत्रित करने के लिए इसके कारणों के विपरीत आचरण करें - धूम्रपान न करें, ठंड से तथा ठंडे पेय लेने से बचें, बहुत अधिक श्रम न करें।
दमा के रोगी को नियमित व्यायाम, पौष्टिक आहार, खुली हवा में लंबी-लंबी साँसें लेनी चाहिए
सीधे बैठें और आराम से रहें; तुरंत सुनिश्चित मात्रा में रिलीवर दवा लें
पांच मिनट के लिए रुकें, फिर भी कोई सुधार न हो तो दोबारा उतनी दवा लें।
अस्थमा से जुड़े धारणा और तथ्य
धारणा : दमा का पूरी तरह इलाज बहुत जल्दी ही सम्भव है।
तथ्य: यह लम्बे समय तक रहने वाली बीमारी है। पूरी तरह से कुछ ही दिनों में इसका ठीक होना संभव नहीं है
धारणा : अस्थमा एक हार्मोनल बीमारी है।
तथ्य: यह कोई हार्मोनल बीमारी नहीं है।
धारणा : दमा के मरीज़ स्पोर्टस में भाग नहीं ले सकते।
तथ्य: स्पोर्टस में भाग लेने से अस्थमा की स्थिति ना ठीक होगी और ना ही बिगड़ेगी।
धारणा : अस्थमा की दवाओं में स्टेरायड होने की वजह से वो सुरक्षित नहीं होतीं।
तथ्य: अस्थमा की दवाओं में स्टेरायड की बहुत कम मात्रा होती है। यह मात्र नुकसानदायक नहीं होती
धारणा : लम्बे समय तक अस्थमा की दवाएं लेने पर बीमार होने पर अन्य दवाओं का असर नहीं होता
तथ्य: यह आवश्यक नहीं है अलग-अलग दवाओं का प्रभाव अलग होता है।
धारणा : अगर मैं अच्छा महसूस करता हूं तो इसका अर्थ है कि मेरा अस्थमा ठीक हो गया है।
तथ्य: अगर अस्थमा के लक्षण नहीं पता लग रहे तो इसका मतलब यह नहीं कि अस्थमा ठीक हो गया है।
धारणा : बच्चों को अस्थमा की दवा देने का सबसे अच्छा तरीका है नेबुलाइज़र।
तथ्य: यह गलत है, आज नेबुलाइज़र की जगह स्पेसर मास्क का प्रयोग किया जा रहा है जो उतने ही प्रभावी है।
इनका सेवन करें :-
फल व सब्ज़ियां खाएं. इनमें बीटा कैरोटिन व एण्टीआक्सिडेंट बहुत अधिक होता है
साइट्रस फूड जैसे संतरे का जूस, मुसम्मी इनमे विटामिन सी होता है
हरी सब्जियों में विटामिन ए होता है .ये अलर्जी के प्रतिरोध में सहायक होते हैं
दाल और हरी सब्ज़ियां खाएं. इनमें विटामिन बी की मात्रा ज़्यादा होती है , वो अस्थमैटिक्स को अटैक से बचाती हैं।
कच्चे प्याज़ का प्रयोग करें .इसमें सल्फर की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है जिससे आस्थमा में लाभ मिलता है।
पालक , फाईबर युक्त भोजन का उपयोग करें .
यदि मांसाहार करते हैं तो भोजन में सी फूड, चिकेन और मीट ले सकते हैं; इनमें सेलेनियम होता है।
ओमेगा 3 फैटी एसिड फेफड़ों में हुई सूजन को कम करता है. ओमेगा 3 फैटी एसिड मछलियों, सैल्मन, ट्यूना और कॉड लिवर में पाया जाता है।
हलिबेट, ओएस्टर भी ले सकते हैं जिसमे मैग्नीशियम होता है जो कि श्वास नली से अतिरिक्त हवा को अन्दर आने देते हैं.
इनका सेवन न करें
•शीतल खाद्य पदार्थो व शीतल पेय
•उष्ण मिर्च-मसाले व अम्लीय रस से बने खाद्य पदार्थ
•भोजन में अरबी, कचालू, रतालू, फूलगोभी, केले, उड़द की दाल, दही और चावल. ऐसा आयुर्वेद चिकित्सा सिद्धांतों में माना जाता है.
तो मित्रों अगर आप की जानकारी में भी कोई अस्थमा रोग से पीडित है तो विश्व अस्थमा दिवस पर
उसे यह जानकारी देकर एक जिम्मेदार नागरिक होने का कर्तव्य निभाएं.
जनहित में ये जानकारी शेयर करें .
“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ॥“
शेष अगली पोस्ट में.....
प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा में,
आपका अपना,
डॉ.स्वास्तिक
चिकित्सा अधिकारी
( आयुष विभाग , उत्तराखंड शासन )
(निःशुल्क चिकित्सा परामर्श, जन स्वास्थ्य के लिए सुझावों तथा अन्य मुद्दों के लिए लेखक से drswastikjain@hotmail.com पर संपर्क किया जा सकता है )
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OBESITY : HOW TO CONTROL WEIGHT AND STAY FIT
Posted by on Wednesday, 9th April 2014
मित्रों आज मैं W.H.O. की रिपोर्ट देख रहा था जिसमें मोटापे के बारे में बहुत कुछ बताया गया था. तो सोचा कि आज इसी विषय पर आपसे चर्चा करी जाए और अपने विचार और अनुभवों को बांटा जाए.
मेरे पास अनेक ऐसे रोगी आते हैं जो मोटापे से परेशान हैं और इसके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानना चाहते हैं और इससे मुक्ति पाना चाहते हैं. तो उनके जो जो प्रश्न होते हैं और इस दौरान जो चर्चा होती है वह आपकी जानकारी के लिए दी जा रही है.
1. मोटापा क्या है-
मोटापा सम्पूर्ण विश्व में तेज़ी से फैलती हुई एक ऐसी समस्या है जिसे हर देश में एक न एक परिवार या उसका कोई एक सदस्य पीड़ित है. आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2008 में दुनिया के 9.8 प्रतिशत पुरुष और 13.8 प्रतिशत महिलाएँ मोटापे का शिकार थीं. दुनिया में मोटापे का संबंध आय से रहा है और अधिक आय वाले देशों में मोटापा अधिक बढ़ा है।
वास्तव में देखा जाए तो यह एक बीमारी ही नहीं बल्कि हमारे शरीर द्वारा आधुनिकीकरण के कारण भाग दौड़ वाले जीवन में अनाप शनाप खाने के प्रति एक ऐसा सिग्नल दिया जाता है जिसे अगर सही समय पर कंट्रोल नहीं किया जाए तो यह किसी न किसी रूप में भयंकर बीमारियों में परिवर्तित हो सकता है. मोटापे के कारण ही पूरे विश्व में उच्च रक्तचाप यानी हाई बी.पी. , हार्ट की बीमारियों के कारण ऊंची मृत्यु दर हो गयी है.
2. मोटापे का क्या कारण होता है ?
मोटापे का मुख्य कारण तो हम सभी जानते हैं और वो हैं अधिक खाना. इसके अलावा अगर भोजन की ली गयी मात्रा के अनुसार श्रम नहीं किया जाए तो भी एक्स्ट्रा चर्बी शरीर में इकठ्ठा होने लगती है और शरीर बेडौल हो जाता है.
लेकिन आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि केवल अधिक खाना ही इसका एकमात्र कारण नहीं है.
मोटापे के कई आंतरिक कारण भी होते हैं जैसे- शरीर की कार्यप्रणाली में असंतुलन, तंत्रिका तंत्र के कुछ विकार, हारमोनों के घटने या बढ़ने की अवस्था. कभी कभी ये भी देखने में आता है कि किसी किसी परिवार में नहीं यह समस्या पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही होती है.
वैज्ञानिकों ने पता लगा है कि ऐसा कुछ आनुवांशिक कारणों से भी होता है. अगर माता पिता में से कोई भी मोटापे से ग्रसित नहीं है तो अगली पीढ़ी में इसके होने की संभावना सिर्फ ७% होती है. वहीँ दूसरी और अगर माता पिता में से कोई एक मोटापे से पीड़ित है तो यह संभावना ४० % तक बढ़ जाती है और अगर माता पिता दोनों ही मोटे हैं तो यह संभावना ८०% तक हो जाती है.
3. मोटापे में शरीर के अन्दर क्या परिवर्तन होता है ?
हाल में हुई रिसर्च से पता चला है कि शरीर में sympathetic नर्वस सिस्टम की क्रियाहीनता से चर्बी की मात्रा बढ़ने लगती है. हमारे शरीर में parasympathetic नर्वस सिस्टम नामक तंत्रिका तंत्र की एक प्रणाली होती है जो शरीर में ऊर्जा के इकठ्ठा होने और उसके खर्च होने पर कण्ट्रोल करता है.
अगर इसके अंदर कोई गडबडी हो जाए तो शरीर में ऊर्जा का ज्यादा स्टोर होने लगता है और हम ज़्यादा खाने लगते हैं जिससे कुछ ही दिनों में भयंकर मोटापा हो जाता है.
4. अपने शरीर को छरहरा कैसे बनाये रखा जाए ?
शरीर को छरहरा बनाने के ७ तरीके-
१- पूरे दिन भर में मैंने क्या खाया ये लिखें
२- शरीर की ज़रूरत के अनुसार ही खाना खाएं. खाना खाते समय इस बात काध्यान रखें कि पेट पूरी तरह ना भर जाए बल्कि उसमें १०-२०% जगह बची हो.
३- फास्ट फ़ूड जैसे- चाउमीन ,बर्गर , पिज़्ज़ा, हॉट डॉग आदि के सेवन से बचें.
४- खाने के समय खाना छोटे बर्तनों में लेने की आदत डालें.
५- खाने को धीरे धीरे चबा कर खाए. ऐसा माना जाता है कि खाने के हर कौरे को अगर २० बार चबाया जाए तो उसके तत्वों का पूरा फायदा आपको मिल जाता है ; या यों कहिये कि अगर हर कौर को २० बार चबाया जाए तो वह पूरी तरह से आपके मुहं में घुल जाता है.
६- खाने का एक निश्चित समय रखें
७- प्रतिदिन कम से कम ४-५ किलोमीटर तेज़ी से चलने का अभ्यास बनाए रखें.
5. क्या इसका कोई प्राकृतिक इलाज़ भी है ?
जी हाँ अगर आप दवा नहीं खाना चाहते हैं तो आप ये करें-
रिंग फिंगर( अनामिका अंगुली) को मोडकर उसके ऊपरी नाखून वाले भाग को अंगूठे के जड पर प्रेशर डालें और अंगूठा मोडकर अनामिका पर दबाव -हल्का बनाये रखें और बाकी अंगुलियों को अपने सीध में रखें। इस तरह जो मुद्रा बनती है उसे सूर्य मुद्रा कहते हैं। यह मुद्रा शारीरिक मोटापा घटाने में बहुत सहायक होता है। जो लोग मोटापे से परेशान हैं, इस मुद्रा का प्रयोग कर असर देख सकते हैं। मैंने कई मरीजों को ये बताया है और इससे उन्हें फायदा हुआ है.
6. मोटापा कम करने के लिए क्या क्या खाएं-
भोजन में गेहूं के आटे की चपाती लेना बन्द करके जौ-चने के आटे की रोटी लेना शुरू कर दें। इसका अनुपात है 10 किलो चना व 2 किलो जौ।
भोजन मे ज्यादा रेशे वाले पदार्थ शामिल करें। हरी सब्जियों ,फलों में अधिक रेशा होता है।
पत्ता गोभी में चर्बी घटाने के गुण होते हैं। इससे शरीर का मेटाबोलिज्म ताकतवर बनता है।
चाय में पोदिना डालकर पीने से मोटापा कम होता है।
रोजाना कच्चा टमाटर, नमक और प्याज साथ खाने से मोटापा कम होने लगता है।
7. क्या कोई आयुर्वेदिक औषधि भी है-
बिलकुल हैं ! प्राचीन काल से ही बहुत सी अनमोल औषधियां थीं जिन्हें नित्य प्रयोग मे लाकर शरीर को सुडौल व छरहरा बनाये रखा जाता था. आप भी इनका ध्यान से सेवन करें-
पिपली का चूर्ण दो बार शहद में मिलाकर सेवन करने से मोटापा कम होता है पिपली सेवन के एक घंटे बाद तक कुछ न सेवन करें तो ज्यादा अच्छा है |
१ चम्मच शहद आधा चम्मच नींबू का रस गरम जल में मिलाकर लेते रहने से शरीर की अतिरिक्त चर्बी नष्ट होती है। यह दिन में 3 बार लेना चाहिए।
पुदीना रस एक चम्मच 2 चम्मच शहद में मिलाकर लेते रहने से मोटापा कम होता है।
मोटापा घटाने के लिए सात दिन में एक दिन व्रत जरुर रखें और सिर्फ फलों का ही सेवन करें।
8. क्या कोई रिसर्च भी ऐसी घरेलू चीजों पर हुई है –
हाँ; ब्रिटेन में हुए एक शोध में सिद्ध हो गया है कि लाल मिर्च शरीर में व्याप्त अवांछित कैलोरी जलाने एवं मोटापा घटाने में मददगार साबित हो सकता है।
9. क्या कोई आसन भी है जिससे मैं अपना मोटापा कम कर सकूँ-
बिलकुल है ; आप सुबह उठकर शौच से निवृत्त होने के बाद निम्नलिखित आसनों का अभ्यास करें –
भुजंगासन, शलभासन, उत्तानपादासन, सर्वागासऩ, हलासन, सूर्य नमस्कार। इनमें शुरू के पाँच आसनों में 2-2 मिनट और सूर्य नमस्कार पांच बार करें तो पांच मिनट यानी कुल 15 मिनट लगेंगे।
तो मित्रों अगर आप या आपका कोई परिचित मोटापे से परेशान है तो इन उपायों से लाभ उठा सकते हैं. इन सभी उपायों से सैकड़ों रोगियों ने लाभ उठा कर हमें बताया है !!
और अगर आपके पास भी कोई ऐसा उपाय है तो उसे बताएं जिससे ज़्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके.
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ॥
धन्यवाद !!!!
आपका अपना,
डॉ.स्वास्तिक
(ये सूचना सिर्फ आपके ज्ञान वर्धन हेतु है. किसी भी गम्भीर रोग से पीड़ित होने पर चिकित्सक के परामर्श के बाद अथवा लेखक के परामर्श के बाद ही कोई दवा लें . अन्य मुद्दों तथा सुझावों के लिए लेखक से drswastikjain@hotmail.com पर संपर्क किया जा सकता है )
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HOW TO MANAGE STAFF IN WORKPLACE
Posted by on Sunday, 6th April 2014
कार्य स्थल में स्टाफ को कैसे मैनेज किया जाए ?
कुछ दिन पहले मेरे एक परिचित का उनके डिपार्टमेंट में प्रोमोशन हुआ था. कुछ दिन तक वो खुश रहे पर जैसे जैसे समय बीतता गया उनकी परेशानियां भी बढ़ने लगी और वो दुखी से रहने लगे.
बात करने पर पता चला कि हॉस्पिटल स्टाफ और अपने बॉस के साथ तालमेल नहीं बैठ पा रहा है और जो कार्यस्थल पर जो पहले मित्र थे अब उनसे भी सम्बन्ध अच्छे नहीं रह गए हैं; ऊपर से बॉस का प्रेशर अलग. वो अपने मरीजों से भी ठीक व्यवहार नहीं कर पा रहे थे.
मेरे विचार से ये मित्र नयी ज़िम्मेदारी आने पर वर्कप्लेस और स्टाफ के बीच तालमेल ठीक नहीं बैठा पा रहे थे और प्रेशर में आकर गलत निर्णय ले रहे थे.
एक स्वास्थ्य प्रशासक के दृष्टिकोण से उसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य अपने कार्यस्थल में सही वातावरण बनाने का होता है. स्वस्थ वातावरण होने पर ही जो काम हम अपने कर्मचारियों से करवाना चाहते हैं वो पूरे हो जाते हैं.
हममे से अधिकाँश ने अपने अधिकारियों को आदेश देते हुए देखा है और न जाने कितने वर्षों से आदेश देने और उसे पूरा करने की बाध्यता का क्रम चला आ रहा है.
लेकिन स्वास्थ्य के बदलते हुए वैश्विक परिवेश में लगातार बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा में सिर्फ आर्डर देने से ही हमारा हॉस्पिटल या उसका कोई डिपार्टमेंट सफल नहीं बन सकता है .
एक कुशल प्रशासक को हर तरह की चुनौती से निबटना आना चाहिए. किसी भी डिपार्टमेंट की सफलता के लिए सकारात्मक माहौल होना बहुत ज़रूरी होता है. नई ज़िम्मेदारी आने के बाद उसे निभाने के लिए हम -
• अपने स्टाफ के सामने स्पष्ट रूप से उनसे आप क्या उम्मीद करते हैं ये बता दें.
• स्टाफ की उस काम को करने के लिए आवश्यक योग्यता है भी या नहीं ये देख ले.
• उस काम को करने के लिए आपके स्टाफ के पास ज़रूरी क्षमताएं हैं या नहीं ये भी पहले जांच लें.
• पता करें कि उस काम को पूरा करने के लिए उनके पास ज़रूरी साधन हैं या नहीं.
• अपने अधीन स्टाफ को समान रूप से काम बाँट दें.
• उनको काम पूरा करने के लिए और सुधार के लिए समय समय पर सलाह देते रहें.
मेरे विचार से दो टाइप की समस्यांए सबसे पहले सामने आती हैं-
१- अधिकारी बनने के बाद पुराने साथियों को मैनेज करना
२- अपने अधिकारी की अपेक्षाओं को पूरा करना
१.पुराने साथियों को अधिकारी के रूप में मैनेज करना-
• जब किसी का प्रमोशन हो जाता है और वो अपने डिपार्टमेंट में अपने वर्तमान साथियों का ही बॉस बनकर पहुच जाता है तो इस समय उनके कुछ पुराने साथियों के अहम् को चोट लगती है और वो ऐसा सोच सकते हैं कि कल तक तो ये हमारे साथ ही काम करता था और आज हमें इसके आर्डर मानने पढ़ रहे हैं. लेकिन ये मानव स्वभाव है कि हम इस बदलाव को जल्दी से नहीं एडजस्ट कर पाते हैं
• इस समय आप अपने ऊपर कण्ट्रोल करते हुए सिर्फ अपने कार्य के ऊपर ही फोकस करें. आपके अन्दर किसी गुण या योग्यता को देखकर ही आपके उच्चाधिकारियों ने आपको प्रमोट किया है. इसे व्यर्थ के वाद विवाद और अहम से जुड़े मुद्दों में न पढ़ने दें.
• स्पष्ट रूप से बताएं कि आपका उनके साथ अब क्या रोल है और आप कैसे उनके साथ काम करना चाहते हैं.
• कार्यस्थल में निष्पक्ष रहें. कार्यस्थल पर तथा व्यक्तिगत सम्बन्धों में अंतर करना सीखें.
• उनसे कहें कि काम को अधिक परफेक्शन से करने के लिए और क्या आइडियाज हो सकते हैं.
• उनकी भावनाओं को समझते हुए बात करें; जैसे अगर आपके किसी पूर्व साथी को प्रशासक के रूप में आपके साथ कार्य करने में समस्या आ रही है तो कहें – मै समझ सकता हूँ कि आपको मेरे साथ काम करने में समस्या आ रही है ; पर हमे मिलजुल ही इस काम को करना है और यही हमारे डिपार्टमेंट के लिए उचित है.
• उनसे पूछें कि आप किस तरह से इस काम को मेरे साथ पूरा कर सकते हैं.
• उनके साथ लगातार निष्पक्ष रूप से कार्य करते रहें जिससे उन्हें भी समझ में आ जाए कि क्यों आपको इस पोजीशन के लिए प्रमोट किया गया.
• अपने साथियों के साथ कोई भी समस्या आने पर आप उन समस्याओं को एक जगह नोट कर लें और उसे सुलझाने के स्टेप पर मिलजुल के कार्य करें.
२. अपने अधिकारी की अपेक्षाओं को पूरा करना-
• हमारे उच्चाधिकारी और हमारे बीच कभी कभी काम को करने के तरीकों और उससे जुड़े कई मुद्दों में अक्सर मतभेद देखे जाते हैं. इससे हमारी कार्य् क्षमताओं पर असर पड़ना स्वाभाविक है.
• आपको हर समय अपने बॉस की अपेक्षाओं को ठीक ठीक जानना ज़रूरी है. इसके लिए समय समय पर अधिकारी से फीडबैक लेते रहना चाहिए. बॉस से अच्छा तालमेल बनाये रखने के लिए हमारी कम्युनिकेशन स्किल्स पर मज़बूत पकड़ होनी चाहिए.
• हमें अपनी स्किल्स को लगातार अपडेट करते रहना चाहिए. हर कार्य पूरा होने के बाद बॉस की उम्मीदें पहले से ज्यादा हो जाती हैं. इसलिए हमारे काम की कुशलता भी पहले से ज्यादा होनी चाहिए.
यहीं हमें बैलेंस बनाना है.
अगर हम अपने बॉस, अपने साथ और अधीन स्टाफ, अपने मरीजों की अपेक्षाओं और उनमे तालमेल बैठा लेते हैं तो हमारी प्रोफेशनल ग्रोथ भी डिपार्टमेंट की ग्रोथ के साथ बढ़ जायेगी ऐसा मेरा व्यक्तिगत अनुभव है !!!!!!
पिछली पोस्ट पर आपके सुझावों पर अमल करते हुए ही हमने यह पोस्ट लिखी है .
धन्यवाद ,
डॉ.स्वास्तिक
(अन्य मुद्दों तथा सुझावों के लिए लेखक से drswastikjain@hotmail.com पर संपर्क किया जा सकता है )
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माता-पिता की परवरिश का बच्चों की सेहत पर असर
Posted by on Saturday, 29th March 2014
नई स्टडी से पता चला है कि माता-पिता की परवरिश का बच्चों की सेहत पर खास प्रभाव पड़ता हैं। माता-पिता का कठोर व्यवहार बच्चों के आलस्य का कारण बनता है।
हाल ही में 0 से 11 वर्ष तक के कैनेडियन बच्चों पर हुई रिसर्च से यह बात सामने आई है कि जो माता-पिता अपने बच्चो से प्यार से बात करके कोई भी फैसला लेते हैं, उनके बच्चे ज्यादा स्वस्थ और फुर्तीले होते हैं। जबकि जो माता-पिता अपने फैसले बिना किसी सलाह के अपने बच्चों पर थोपते हैं वे बच्चे काफी अकेलेपन महसूस करने लगते हैं और इसका नतीजा बच्चों में आलस्य और मोटापे के रूप में सामने आता है।
लीसा काकीनामी जो कि मैकगिल यूनिवर्सिटी की पोस्ट डॉक्टोरल एपिडेमियोलॉजिस्ट हैं, उनका कहना है कि अधिकतर माता-पिता सही परवरिश की ओर ध्यान नहीं देते हैं और वे इस बात को ज्यादा महत्व भी नहीं देते हैं। अगर बच्चो को संतुलित परवरिश दी जाए तो उन्हें मोटापे और आलस्य जैसी बीमरियों से बचाया जा सकता है।
इस शोध में एक सर्वे में कुछ माता-पिता से बात की और अलग-अलग परवरिश के तरीकों की लिस्ट बनाई और फिर बच्चों के बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) प्रतिशत से इसका विश्लेषण किया। काकीनामी का कहना है कि घर के माहौल से भी बच्चों की सेहत एवं आदतों को आकार मिलता है।
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फूड पॉइजनिंग-
Posted by on Saturday, 29th March 2014
क्या है फूड पॉइजनिंग-
शादी या किसी समारोह में या फिर बाहर ठेलों पर बिकने वाली कोई चीज खाने पर बच्चों में उल्टी, बुखार, कंपकंपी या लूज मोशन जैसा कोई लक्षण नजर आए, तो इसे फूड पॉइजनिंग कहते हैं। फर्क इतना है कि अपनी-अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता के अनुसार किसी में लक्षण अधिक तो किसी में कम नजर आते हैं।
क्या सावधानी बरतें -
अगर किसी डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ का ढक्कन उभरा हुआ है, तो उसे ना खाएं। ढक्कन के उभरे होने का मतलब है कि उसमें गैस भर गई है और वह खराब हो गया है।
* फूले हुए टेट्रा पैक का जूस न पिएं। इसके फूलने से पता चलता है कि इसमें गैस भर गई है, भले ही इसकी एक्सपायरी डेट बाद की हो, पर इसे इस्तेमाल में न लाएं।
* शादी-ब्याह में जा रहे हैं, तो वहां सलाद जैसी चीजें खाने से परहेज करें। सलाद में इस्तेमाल में लाई जा रही सब्जियों का सही तरीके से साफ होना और फिर काटने वाले व्यक्ति के हाथों का धुला-साफ होना जरूरी है। इस तरह की कच्ची चीजें खाने से परहेज करें।
* दही और दूध की बनी हुई कोई भी चीज, जो उबली ना हो, न खाएं। खासतौर से ऐसी चीजें बच्चों को ना दें।
* दाल-सब्जी आदि जैसी चीजें, जो उबालकर बनाई जाती हैं, उन्हें खा सकते हैं।
* फूड पॉइजनिंग होने पर बच्चे को अस्पताल ले जाएं।
ट्रीटमेंट : वहां बच्चे को आईवी फ्लूइड्सल दिए जाते हैं।
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