Life expectancy of patients of HIV now considerably exceeds the average in some people with HIV in the USA provided ART is started earlier above 350
Posted by on Sunday, 21st September 2014
Life expectancy of patients of HIV now considerably exceeds the average in some people with HIV in the USA provided ART is started earlier above 350
PROF.DRRAM ,HIV/AIDS,SEX DIS.,SEX WEAK.& ABORTION EXPERT
profdrram@gmail.com,+917838059592,+919832025033,DELHI –NCR,IND
HIV/ AIDS,CANCER LATEST MEDICINES AVAILABLE AT CHEAP RATE.
FOLLOW ON FACE BOOK:www.facebook.com/ramkumar
FOLLOW ON TWITTER:www.twitter.com/profdrram
A study from the US has found that some groups of people with HIV, especially those treated before their CD4 count falls below 350 cells/mm3, now have life expectancies equal to or even higher than the US general population.
However, it also finds that life expectancy for some other groups – most notably women and non-white people – is still considerably below comparable members of the general population and that for people who inject drugs, life expectancy in the era of antiretroviral therapy (ART) has not improved at all.A second study, which looked at death rates among both HIV-positive and HIV-negative members of two cohorts of people with or at risk of HIV, has found that the death rate from non-AIDS-defining illnesses among people with HIV who started ART above the 350 cells/mm3 threshold was not, and never has been, any higher than among comparable HIV-negative people.
Life expectancy at age 20 in the US population is approximately 57 years in men (i.e. on average, and in the absence of further change, 50% will die by the age of 77) and 62 years in women (i.e. 50% chance of death by 82). In Canada, men can expect to live nearly three years longer than this and women just over two.The study found that for the group as a whole and over the full eight years, the average life expectancy in people with HIV was just under 43 years, i.e. 50% will die by the age of 63 – 15 years earlier than men and 19 years earlier than women in the general US population.
However, there were huge disparities in life expectancies between different groups. Whereas people who inject drugs only had a life expectancy of 29 more years at age 20, for white people it was 52 years, for those starting treatment with a CD4 count above 350 cells/mm3 it was 55 years and for gay men it was 57 years – the same (or slightly higher) than in US men in general.In other words, the sole contributor to the increased mortality in people who started ART early was AIDS. This was not, however, the case for people who started ART later, who had raised mortality due to non-AIDS-related causes as well as due to AIDS.
Rate It
बढ़ते " कंडोम " के व्यवहार ने " एशियन गेम्स " में ब&
Posted by on Sunday, 21st September 2014
बढ़ते " कंडोम " के व्यवहार ने " एशियन गेम्स " में बढ़ाया सेक्स रोग या एड्स का प्रकोप,समाज में पनपते खुले सेक्स ने खोली सरकारी आंकड़ों की पोल,सावधानी बरते और नियमित टेस्ट ही बचे हैं एड्स या सेक्स रोग से बचने के उपाय- नहीं तो होंगे इसके शिकार
प्रोफेसर डॉ राम :एड्स / HIV तथा यौन रोग (पुरुष,महिला रोग,गर्भपात) विशेषज्ञ
profdrram@gmail.com,+917838059592,+919832025033 दिल्ली, एनसीआर
एड्स और कैंसर की आधुनिक एलॉपथी दवा(USA & UK)कम दाम पर उपलब्ध
फेसबुक पर संपर्क करें :FACE BOOK:www.facebook.com/ramkumar
ट्विटर पर सम्पर्क करें TWITTER:www.twitter.com/profdrram
इंचियोन में 17 वें एशियन गेम्स के उद्घाटन समारोह की शुरुआत हो चुकी है।
इस समारोह को देखने के लिए लगभग 60,000 खेल प्रेमी एस्टेडियम में मौजूद हैं। गौरतलब है कि 17 वें एशियन गेम्स में 45 देशों के 9429 एथलिट हिस्सा ले रहे हैं।खेलों का रंगमंच सज चुका है और एशियाई देशों के तमाम एथलीट एशियन गेम्स 2014 में हिस्सा लेने इंचियोन पहुंच चुके हैं। सभी खिलाड़ी इन प्रतिष्ठित खेलों में मेडल जीतना चाह रहे होंगे ऐसे में जाहिर है कि खुद को फिट रखने के लिए खिलाड़ियों के बीच अच्छे खानपान की मांग होगी....लेकिन एक चीज ऐसी है जिसकी मांग इन दिनों इंचियोन के खेल गांव में सबसे ज्यादा नजर आ रही है। यह चीज है 'कंडोम'। इसकी मांग यहां इतनी तेजी से बढ़ रही है कि इनकी निर्धारित संख्या भी कम पड़ती जा रही है।
दरअसल, एशियन गेम्स आयोजकों की मानें तो खेल गांव जहां पर खिलाड़ी ठहरे हुए हैं, वहां हर दिन 5000 से ज्यादा कंडोम बांटे जा रहे हैं और इनकी मांग रुकने का नाम ही नहीं ले रही। तीन दिनों से कंडोम बांटने का सिलसिला यहां जारी है और हर दिन 5000 की निर्धारित संख्या का स्टॉक भी कम पड़ता नजर आ रहा है।इतने अधिक बढ़ते " कंडोम " के व्यवहार ने " एशियन गेम्स " या फिर इस तरह के खेल आयजनो ने बता दिया है की हम सेक्स या काम वासना के किस तरह शिकार हो गए हैं i खेल के मैदान में कंडोम की क्या खपत होनी ,इसका अर्थ है की इन खेल आयजनो में अय्यासी या फिर काम की दुकान चलती है जिसमे खिलाडी अधिकारी अपने को मजबूत और खुस तथा उत्साह भर दिखने के लिए सेक्स या काम वासना की सहायता लेते हैं i
इन दिनों ये बात अब खुलकर सामने आ गयी की खिलाडी या मेनेजर या फिर कोच या फिर ट्रेनिंग देने वाले पेशावर लोग या फिर खेल प्रशासक या खेल पत्रकार जो इनके साथ जाते हैं वो खुल कर सम्भोग या सेक्स या काम करते हैं क्यूंकि इतने कंडोम की मांग तो यंहा सिर्फ इनके काम के कारन ही आएगी या तो ये अपनी पत्नियों या फिर दोस्त या फिर भाड़े में सेक्स
लड़कियों के साथ सेक्स करते हैं i ये कंडोम तो खेल आयजको को इन खेल टीमों को देने होते हैं बाहरी जनता या दर्शक तो बहार के होटलों में रूककर बहार से कंडोम खरीद अपनी काम वासना को शांत करते हैं i
आयोजकों के मुताबिक 3 अक्टूबर तक चलने वाले इन खेलों के समाप्त होते-होते तकरीबन एक लाख कंडोम बांटे जाने की उम्मीद जताई गई है। गौरतलब है कि है कि हर बड़े खेल आयोजन में इस तरह की प्रक्रिया अपनाई जाती रही है।रिकॉर्ड्स के मुताबिक 1988 जब सिओल ने ओलंपिक खेलों की मेजबानी की थी तब तकरीबन 8500 कंडोम बांटे गए थे। इसके बाद 1992 में बार्सिलोना ओलंपिक के दौरान इसकी संख्या बढ़कर 50 हजार तक पहुंच गई जबकि पिछले ओलंपिक यानी लंदन 2012 में तकरीबन 1,50,000 कंडोम बांटे गए थे।
इन दिनों भारत या दूसरे देश के क्रिकेट के खिलाडी अपने या बहार के देश में खेलने जाते हैं तो अपनी पत्नी या प्रेमिका को साथ ले जाते हैं और ये कहा गया की उनकी काम या सेक्स की वासना पूरी होने पर उनका क्रिकेट का खेल प्रदर्शन अच्छा होता है और जन्हा तक आई पी ल का या टी ट्वंटी का सवाल है तो वंहा तो खेल के बाद रत में होटलों में पार्टी में सेक्स खुल के परोशा जाता है i यानि खुल कर बिना रोक टॉक के खेल जैसी पवित्र स्वस्थ कार्य कर्मो में जब इस तरह सेक्स या काम आने लगा तो हम समझ जाएँ की किस तरह सेक्स संक्रामक रोग या hiv या एड्स फ़ैल सकता है i हमारे सरकारी आंकड़े जो भी कहे पर इस तरह सेक्स का समावेश हमारे बीच या हमारे समाज या हमारे पार्टी या आयजनो में होना लगा है की ये रोग हर समय हमारे दरवाजे पे दस्तक दे रहे हैं और थोड़ी सी भूल हमें इनका शिकार बना सकती है इसलिए बराबर टेस्ट या जांच करवानी जरुरी है i
Rate It
एड्स के रोगी आज भी उपेछित हैं-कुछ सच्ची कहान&
Posted by on Sunday, 21st September 2014
एड्स के रोगी आज भी उपेछित हैं-कुछ सच्ची कहानियां जो हमें कंपा देंगी पर समाज में व्याप्त अंधविस्वास और भ्रम,एड्स पीडितो की ले लेता है जान,सख्त कानून इलाज़ जाँच से दूर रहने को करता मजबूर -सेक्स में लिप्त समाज में एड्स फैलता फूलता चारो और
प्रोफेसर डॉ राम :एड्स / HIV तथा यौन रोग (पुरुष,महिला रोग,गर्भपात) विशेषज्ञ
profdrram@gmail.com,+917838059592,+919832025033 दिल्ली, एनसीआर
एड्स और कैंसर की आधुनिक एलॉपथी दवा(USA & UK)कम दाम पर उपलब्ध
फेसबुक पर संपर्क करें :FACE BOOK:www.facebook.com/ramkumar
ट्विटर पर सम्पर्क करें TWITTER:www.twitter.com/profdrram
हर साल एड्स जागरुकता के लिए विभिन्न कार्यक्रम किये जाते हैं लेकिन अफसोस की बात है कि अभी भी लोग जागरुक नहीं हो पाये हैं। यह कड़वी हकीकत उस सभ्य समाज की है, जहां लोगों को इस बीमारी के बारे में मालूम है। जानलेवा बीमारी का दर्द झेल रहे उन लोगों की तकलीफ तब और बढ़ जाती है जब घर वाले या उनके अपने ही उनसे उपेक्षित व्यवहार करते हैं, पर यह निरन्तर जारी है।यंहा तक की सख्त कानून का सहारा ले कर पुलिस और प्रशासन उन पर डंडे बरसता है फलस्वरूप वेश्यावृति और ड्रग सेवन अपराध बन गया है पुलिस पैसे लेने के सिवा इनका खुल के शारारिक शोषण भी करती है ,पैसे और जीवन यापन के लिए सेक्स के सिवा इनके पास विशेष कर ग्रामीण और गरीब शहरी महिलाओ के पास और कोई साधन बचता ही नहीं और समाज के ठेकेदार इन्हे गरीबी का फायदा उठा समाज में बेचने का खुले आम धंधा करते हैं,गेय,लेस्बियन,ट्रांसजेंडर या हिंजरो की तो सुनता ही कौन है समाज और हमारा तो इन्हे बिना समझे या जाने सेक्स का अपराधी मान चूका है I
1.एड्स हो गया माँ बेटी के साथ अपने बेटे और परिवार से दूर कर दी गयी :-----
लखनऊ से बाहर स्थित बंथरा में रहने वाली 29 वर्षीय अनुप्रिया यादव (नाम परिवर्तित) की कहानी आपके दिल को कचोट कर रख देगी। अपने ही घर वालों द्वारा घृणित नजरों से देखी जाने वाली अनुप्रिया को अपनी सात वर्षीय बेटे तक से मिलने नहीं दिया जाता है। घर वालों का मानना है कि अनुप्रिया से कहीं उसके बेटे को एड्स न हो जाये, इसलिए उसे उसके पास भटकने तक नहीं देते। जबकि वो मासूम एड्स के बारे में तो कुछ जानता तक नहीं।
वो बच्चा सिर्फ इतना समझता है कि मां की तबियत खराब है। अनुप्रिया की दस वर्षीय बेटी ने बताया कि काफी छुपाने के बावजूद उसके गांव वालों को यह मालूम हो गया कि वह और उसकी मां इस भयावह बीमारी से पीड़ित हैं। गांव वालों ने उसे बिरादरी से अलग कर दिया। अब वह गांव से थोडी दूरी पर सूनसान इलाके में रह रही है। दोनों बच्चों का स्कूल से नाम भी कट गया है। घर और गांव तो दूर यहां डाक्टर भी उससे उपेक्षित व्यवाहर करते हैं।
2.घायल बेटी के इलाज के लिए भटकती रही मां :-----
कानपुर के रावतपुर की रहने वाली सबीना शेख (नाम परिवर्तित) ने एक दुर्घटना का जिक्र करते हुए बताया कि जीटी रोड पर मार्च 2011 में एक एक्सीडेंट हुआ, जिसमें वो हलकी और उसकी बेटी गंभीर रूप से घायल हो गई। वो दौड़ी-दौड़ी पास के नर्सिंग होम में गई। सबीना ने जाते ही बता दिया कि वो और उसकी बेटी एचआईवी पॉजिटव है, लिहाजा उसी हिसाब से उनका इलाज करें। यह सुनते ही नर्सिंग होम ने सबीना और उसकी घायल बेटी को बाहर का रास्ता दिखा दिया। रोती बिलखती सबीना अगले नर्सिंग होम में पहुंची, वहां भी उसे यही झेलना पड़ा।बेटी की हालत उससे देखी नहीं गई और तीसरे नर्सिंग होम में उसने एचआईवी का जिक्र तक नहीं किया। नर्सिंग होम ने तत्काल इलाज शुरू किया और उसकी बेटी के हाथ में 9 टांके लगे। जरा सोचिये 9 टांकें मतलब बच्ची के हाथ का मांस तक दिख रहा होगा, लेकिन एचआईवी सुनकर नर्सिंग होम वालों को न तो मांस दिखा और न ही करहाती बच्ची का दर्द।हालांकि यहां भी सबीना को नर्सिंग होम के डॉक्टर की फटकार सुननी पड़ी, क्योंकि जब बेटी के टांके लग गये तो सबीना ने कहा कि इस्तेमाल किये गये औजान ठीक तरह से स्टरलाइज़ कर लें, क्योंकि उसकी बेटी को एचआईवी है। सबीना ने यह इसलिए बताया क्योंकि रक्त और एचआईवी पेशेंट्स पर इस्तेमाल किये गये औजारों या सिरिंज से एड्स फैलता है। खैर यहां इतनी इंसानियत बाकी थी, कि उसे धक्के देकर बाहर नहीं निकाला गया।
3.मौत पर भी बातें बनाते हैं लोग :----
हरदोई के स्वयंसेवी ज्ञानेंद्र सिंह ने जो बताया, वो सुनकर तो आप भी कहेंगे, कि दुनिया में कैसे-कैसे लोग हैं। बड़ा चौराहा के पास रहने वाले ज्ञानेंद्र के पड़ोसी सेवक राम की तबियत अचानक खराब हुई। वो और उसके घर वाले उसे स्थानीय नर्सिंग होम में ले गये। नर्सिंग होम ने सेवक को वेंटीलेटर पर रख दिया। रात भर लाइफसेविंग ड्रग्स दी गईं। सुबह सेवक की मौत हो गई। नर्सिंग होम ने डेथ सर्टिफिकेट देते समय कह दिया कि सेवक को एड्स था।सेवक के भाई को विश्वास नहीं हुआ, उसने उसका ब्लड सैंपल ले लिया और एक बड़े डायग्नॉस्टिक सेंटर पहुंचा, जहां से रिपोर्ट शाम को मिलनी थी। उधर सेवक के शव को घर लाया गया। लेकिन तब तक एचआईवी की बात पूरे परिवार में फैल चुकी थी। आलम यह था कि सेवक के शव को कोई छूने तक को तैयार नहीं था। सभी को डर था कि कहीं उन्हें भी यह बीमारी न लग जाये। तभी ज्ञानेंद्र व उनके साथियों ने मिलकर सेवक के शव को अंतिम संस्कार के लिए तैयार किया और दाह संस्कार के लिए ले गये। इस दौरान लोग सेवक के बारे में तरह-तरह की बातें बनाते दिखे। कुछ ने कहा, कि सेवक जरूर नशा करता होगा, तो कुछ ने कहा कि अवैध संबंध रखता होगा... लेकिन दाह संस्कार के बाद सेवक के भाई के पास नर्सिंग होम से फोन आया कि उसे एचआईवी नहीं था। वो जब चाहें रिपोर्ट ले जा सकते हैं।
अनुप्रिया और सबीना के जीवन की इन सच्ची घटनाओं को देखते हुए एक ही बात जहन में आती है। वो यह कि सरकार हर साल अरबों रुपए खर्च करती है, फिर भी देश के लोग एचआईवी को न तो ठीक तरह से समझ पाये हैं और न ही उससे बचने के उपाये जानते हैं। लगता है सरकार सिर्फ खाना पूर्ति करती है,सरकारी धन का सही उपयोग नहीं होता ये वंहा नहीं पहुंचता जन्हा इसे पहुचना चाहिए जिससे गरीब बेसहारा पीड़ित एड्स रोगी आज भी बिना इलाज़ के मर रहे है और समाज से प्रताड़ित रहने को मजबूर है I जबकि सरकारी बाबू और नेता खुद कई NGO बनाकर सरकारी धन या विदेशो से मिले अरबो के धन को विदेशी भ्रमण या बड़े होटलों में एड्स कांफ्रेंस या फिर फ़िल्मी सितारों की महफ़िल सजा एड्स जागरूकता के नाम पर लूट लेते हैं I ये सिर्फ आंकड़े बनाते है जिससे मिडिया में खाना पूर्ति हो जाये इनका ध्यान एड्स की जाँच,दवा और समुचित इलाज़ और एड्स रोगी को समाज में पुनः स्तापित करने में काम ही जाता है I कड़े कानून एड्स रोगियों को अपनी बात कहने से रोकता है क्यूंकि जैसे ही उनके बारे में पता चला इनकी सख्त पुलिस उनका शोसन करना सुरु कर देती है
Rate It
HIV/AIDS:SWITCHING ARV FOR ADVERSE SIDE EFFECT MAY INCREASE VIRAL LOAD,NEW ARV IS PRESCRIBED IF IT IS ABSOLUTE NECESSARY
Posted by on Monday, 25th August 2014
HIV/AIDS:SWITCHING ARV FOR ADVERSE SIDE EFFECT MAY INCREASE VIRAL LOAD,NEW ARV IS PRESCRIBED IF IT IS ABSOLUTE NECESSARY
PROF.DRRAM ,HIV/AIDS,SEX DIS.,SEX WEAK.& ABORTION SPECIALIST
profdrram@gmail.com,+917838059592,+919832025033,DELHI –NCR,IND
HIV/ AIDS,CANCER LATEST MEDICINES AVAILABLE AT CHEAP RATE.
FOLLOW ON FACE BOOK:www.facebook.com/ramkumar
FOLLOW ON TWITTER:www.twitter.com/profdrram
As new ARV medicines are coming in market after research,there is growing feeling that if we substitute old with new one better result is found but it is not correct as it has been found in canada that viral load of HIV may increase after starting new therapy.The researchers evaluated the risk for virologic failure in 2807 HIV-infected patients from the CANOC collaboration who initiated antiretroviral therapy from January 2005 to June 2012.CANOC is Canada's largest HIV cohort study. It focuses on evaluating the impact of antiretroviral therapy in people living with HIV across the country.Everyone in the study cohort had achieved virologic suppression, defined as a viral load below 50 copies/mL measured twice, at least 1 month apart. Virologic failure was defined as a viral load above 1000 copies/mL.During the study period, 64% of the patients never switched their antiretroviral regimen, 14% switched regimens once, and 22% switched regimens at least twice. Mean time to first switch was approximately 10 months.
Switching therapy was associated with an increased risk for subsequent virologic failure (adjusted hazard ratio, 2.70), the researchers reporrapy if previous therapy was controlling it nicely so it is advised that we should never try a new therapy or ARV MEDICINE IF CURRENT ONE IS CONTROLLING DISEASE WELL.Change of drug is only done when we get serious side effect which cannot be controlled by easy methods or drugs and we have to stop the drug .
For virologically suppressed HIV patients, a switch in antiretroviral therapy is associated with an increased risk for subsequent virologic failure, Canadian Observational Cohort (CANOC) researchers suggested.
Rate It
HIV /AIDS:ARV MEDICINES IMPROVES CD4,DECREASE VIRAL LOAD-LEAD TO ALMOST A NORMAL LIFE EXPECTANCY IN HIV PATIENTS
Posted by on Monday, 25th August 2014
HIV /AIDS:ARV MEDICINES IMPROVES CD4,DECREASE VIRAL LOAD-LEAD TO ALMOST A NORMAL LIFE EXPECTANCY IN HIV PATIENTS
PROF.DRRAM ,HIV/AIDS,SEX DIS.,SEX WEAK.& ABORTION SPECIALIST
profdrram@gmail.com,+917838059592,+919832025033,DELHI –NCR,IND
HIV/ AIDS,CANCER LATEST MEDICINES AVAILABLE AT CHEAP RATE.
FOLLOW ON FACE BOOK:www.facebook.com/ramkumar
FOLLOW ON TWITTER:www.twitter.com/profdrram
HIV is better controlled by GOOD ARV MEDICINES IF TAKEN REGULARLARLY,NOW A DAYS GOOD LESS TOXIC MEDICINES IS AVAILABLE IF TAKEN REGULARLARLY IT INCREASES CD4 COUNT AND DECREASES VIRAL LOAD AND ULTIMATELY PERSON BECOME FREE OF INFECTION DOESNOT GET OPPURTUNISTIC INFECTIONS AND AS A RESULT LIVES A NORMAL LIFE.
In the UK, where ART is free and available in an established National Health Service, people living with HIV infection can expect to live as long as the general population if successfully treated. Our study showed that longevity depends on both restoration of CD4+ cell count to near normal levels and suppression of the virus to undetectable levels in peripheral blood.
Life expectancy of HIV-positive individuals treated with antiretroviral therapy (ART) in the UK improved by nearly 16 years between 1996 and 2008. Although some groups of HIV-positive individuals may expect to live a similar life span to that of the general population, others have reduced life expectancy due to the impact of late diagnosis and late initiation of ART. A previous study estimated life expectancies of HIV patients in the UK stratified by CD4+ cell count at ART start,but not gains in years of life in response to ART. A European study showed that successfully treated patients who attained a CD4+ cell count more than 500 cells/μl have a standardized mortality ratio (SMR) approaching .However, SMRs are more difficult to communicate to patients than life expectancies and not all patients attain a CD4+ cell count more than 500 cells/μl.The lower limit of the normal CD4+ cell count range is below 500 cells/μl, and therefore exceeding this level might be an unrealistic target for patients who had low preinfection counts. Furthermore, viral suppression is an important factor in treatment success and virological replication may have an effect on prognosis that is independent of CD4+ cell count.
We aimed to investigate the improvement in life expectancy due to CD4+ cell count restoration and viral suppression in patients on ART. We used data from the UK Collaborative HIV Cohort (UK CHIC) Study, on HIV-positive individuals in care in the UK between 2000 and 2012, to estimate life expectancy of those treated for HIV-infection at different durations of ART according to latest CD4+ cell count and viral suppression status.
Rate It